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होली
होली
फाल्गुण पूर्णिमा एवं चैत्र प्रतिपदा (कृष्णा) के दिन होली मनायी जाती है। मदन मोहन मंदिर में भगवान को अबीर घुले जल से अभिषेक कराया जाता है। लक्ष्मी नारायण तिवारी के वंशज पहले मंदिर परिसर के भीतर मदन मोहन स्वामी पर अबीर चढ़ाते हैं तत्पश्चात सिंहासन सहित भगवान को डोल चबूतरे पर ले जाया जाता है जहाँ समस्त ग्रामवासी एवं अन्य श्रद्धालुगण सबसे पहले मदन मोहन पर अबीर अर्पित करते हैं इसके बाद ही अपने मित्रों एवं परिजनों को अबीर लगाते हैं। इस दिन मदन मोहन परिसर बोड़ेया का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र बन जाता है।
जन्माष्टमी
जन्माष्टमी
श्री कृष्ण अर्थात मदन मोहन स्वामी का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र, वृष के चन्द्रमा में आधी रात को हुआ था। यह जन्म हुआ था मथुरा में लेकिन सम्पूर्ण देश इस जन्माष्टमी को मनाता है। बोड़ेया मदन मोहन मंदिर में प्रत्येक भादो कृष्ण अष्टमी की रात्रि में भगवान की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह त्योहार प्रतिवर्ष सम्पन्न होता है।
दीवाली
दीवाली
सम्पूर्ण भारत में कार्तिक अमावश्या को दीवाली मनायी जाती है। यह लक्ष्मी पूजन का दिन होता है। इसमें दीप दान किया जाता है अतः इसे दियेवाली अमावश्या भी कहते हैं। यह लक्ष्मी के आगमन का सूचक होता है। इस रात्रि में बोड़ेया के मदन मोहन मंदिर को दिए से पूरी तरह सजाया जाता है। यह मंदिर देखने योग्य हो उठता है। इसकी भव्यता निखर आती है और लोग हर्षित हो उठते हैं।
देवोत्थान
देवोत्थान
कहा गया है कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन विष्णु अपनी शेष शय्या पर से उठते हैं। इस दिन मंदिर प्रांगन में अनेक व्रती पूजा-पाठ के लिए आते हैं। इसी पूजा के बाद समस्त शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है।
रास
रास
अगहन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन रास मनाया जाता है। रास का तात्पर्य है रस का बहुवचन। दूसरा अर्थ है 'ब्रह्म'। तीसरे अर्थ के रूप में गोपिकाओं और कृष्ण के सम्मिलित रूप को रास कहा जाता है। सोलहवीं शती में बल्लभाचार्य तथा हित हरिवंश ने इसी श्रंगार मूलक रास में धर्म के अंग के साथ नृत्य की पुनःस्थापना की तथा उसका नेता रासरसिक शिरोमणी श्री कृष्ण को बनाया। बोड़ेया में इस दिन मंदिर परिसर कृष्ण प्रधान लोक गीतों एवं वाद्यों से गूंज उठता है।
सत्यनारायण कथा
सत्यनारायण कथा
मंदिर परिसर में प्रत्येक पूर्णिमा को सत्यनारायण कथा का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु, भक्त एवं प्रेमी लोग आरती प्रसाद के लिए पूरी कथा का श्रवण करते हैं तत्पश्चात स्तुति कर ही प्रस्थान करते हैं। इसमें कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है तथा व्यक्तिगत पूजा का आयोजन भी कर सकता है।
अन्नप्राशन
अन्नप्राशन
मनुस्मृति के अनुसार मनुष्य के सोलह संस्कारों में एक यह भी हैं जिसमें बच्चे को सर्वप्रथम अन्न चटाया जाता है। यह संस्कार लड़के का छठे या आठवें महीने में तथा लड़की का पाँचवें या सातवें महीने में किया जाता है। लक्ष्मी नारायण तिवारी के वंशजों का अन्न प्राशन संस्कार इसी प्रांगण में सम्पन्न होता है। इसी परिसर में मुण्डन एवं विवाह संस्कार भी सम्पन्न होता रहा है।
प्रवेश-निषेध:

मंदिर के गर्भगृह में पुजारी के अतिरिक्त किसी का भी प्रवेश निषेध है। विशेषकर महिलाओं के लिए (लक्ष्मी नारायण तिवारी के वंशजों में) गर्भगृह में प्रवेश पूर्णतः निषिद्ध है। लेकिन परिवार में किसी कन्या के विवाह होने पर विदाई के पूर्व गर्भगृह में नव दम्पत्ति प्रवेश कर पूजन करते हैं जिसमें कन्या राधा रानी को सिंदूर अर्पित करती है। इसके बाद प्रवेश की मनाही है।

जब परिवार में किसी लड़के का विवाह होता है तो बारात लौटने पर कुलदेवी पूजन के दिन पूजा के पश्चात नवदम्पति गर्भ गृह प्रवेश कर पूजा करते हैं तथा राधारानी को सिंदूर अर्पित करते हैं। इसके बाद वह बहू फिर कभी गर्भगृह में कदम नहीं रखती है। यह प्रथा तिवारी परिवार के लिए आदि काल से चली आ रही है। अन्य ग्रामीणों के बीच भी यह प्रचलित है कि कोई भी नववधू का प्रवेश घर में मदन मोहन स्वामी के दर्शन के पश्चात ही होता है। मदन मोहन स्वामी के प्रति ग्रामीणों के हृदय की यह श्रद्धा आह्लादकारी है।